शनिवार, 17 सितंबर 2011

kyuki chalna hi niyati hai

क्योकि चलना ही नियति है !
घना जंगल एक पगडंडी अकेली
दिशाएं मौन है डूबी अंधेरे में
जा रहा हूँ मैं अकेला
बस यही है आज का सच
चल रहा हूँ क्योकि
चलना ही नियति है!!
आ गया अब एक चौराहा
दाँत फाडे सामने आकर है खड़ा
किधर जाऊ नहीं मैं जानता हूँ
पीछा कर रहा हैं घोर कोलाहल
ढोल अपना सब बजाते हैं
सभी अपने गीत गाते हैं
कौन सच है कौन है केवल मुखौटा
कौन पगडंडी सही है
कौन है केवल भुलावा
मापने का यंत्र तो मिलता नही है
राह मेरी सही है या ग़लत
यह मैं जानने काबिल नही हूँ
बाढ़ सी आई हुई है
बहे जाते हैं अनेकों
कौन जाने कहाँ कब कौन सा बजरा
किनारे पर लगेगा
भाव आते हैं अनेकों
किंतु सब नेपथ्य से टकराए
वापस लौट आते हैं
मेरी पगडंडी मुझे भाने लगी हैं
राह निर्धारित तुम्ही ने की
यही हैं मान्यता मेरी
मुझे विश्वास है पूरा
तुम कहीं तो हो
कभी शायद मिलोगो भी
मैने सुना है यह
अहम की लाश पर बैठा मुसाफिर
हर हाल मैं उस पार पहुचा है
काट कर व्यवधान सारे
इसी विश्वास में चल रहा हूँ
क्योकि चलना ही नियति है !!!!!!!!!!!!
शिवनारायण जौहरी विमल