शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

जिजीविषा-------------ठहरा हुआ आसमाँ

ठहरा हुआ आसमाँ
ठीक सब कुछ वही है
हाँ । वही तो है
कुछ बदलता नहीं है
एक चिडिया ने वही अपना
चिरपिराहट का पुराना गीत
फिर गाया ।
ठहरा हुआ सा आसंमाँ
ठहरा हुआ यह पल
कि जैसे एक पहिया
कर्ण के रथ का
धरा में धँस गया हो।
खिलखिलाती जा रही सरिता
दहाडे मारता सागर
पूर्ववत ठहरे हुए हैं
और सारे राग सारे रंग
जैसे सो रहे हैं
लोरियों में भीग कर ।
हरी सी मखमली कोयल
गोद में लेटी हुई है
लाडले माँ के
वह प्रकृति भी
एक शाश्वत सत्य है
ऐसा गुमाँ होने लगा है।।।
शिवनारायण जौहरी विमल

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

जिजीविषा------बचपन

बचपन
बदलते हुए ऊषा के
रंगों से भीग कर
गूँजती शहनाई से
दूर दूर प्रान्तर में
स्वर मिलाती हुई
तरंगायित लहरों पर
गुलाबी सी कोर लगा
नव-जात शिशु जैसा
झाँकता सबेरा ।
किसलय से मकरंदित
वायु के झकोँरोँ ने
फूलों लदी डाली से
बरसाए सुमन और
हरी-भरी धरती को
चादर से ढाँक दिया।
नींद में मचल रहे
किलबिल से जीवन की
भूख को बुझाने चले
चुग्गा को ढूँढ रहे
उन फैले डैनों से
लिपट गया ऊषा
के आँचल को
चूमता सबेरा।
और वहीं गोदी में
सुनहले से पारदर्शी
प्यार ने दुलार ने
कर लिया बसेरा
मुस्काते तुतलाते
अस्फुट स्वरों में सना
दिन का वह बचपन ही
बचपन था मेरा।।।।।।
शिवनारायण जौहरी विमल